Ad

उर्वरक सब्सिडी

कृषि सब्सिडी : किसानों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की वित्तीय सहायता के बारे में जानें

कृषि सब्सिडी : किसानों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की वित्तीय सहायता के बारे में जानें

भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान आज भी बहुत बड़ा है और भारत की ग्रामीण जनसंख्या का लगभग 55 प्रतिशत हिस्सा, मुख्यतया कृषि पर ही निर्भर है। 2021 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार कृषि और उससे जुड़े हुए सेक्टर, भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद यानी की जीडीपी (GDP - Gross Domestic Product) में 18% योगदान देते है। आजादी के समय यह अनुपात 70 प्रतिशत से 80 प्रतिशत के बीच में था। विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधानों और नई तकनीकों की मदद तथा भारत सरकार के सकारात्मक अप्रोच और कृषि क्षेत्र में युवा किसानों की बढ़ती भागीदारी की वजह से, आने वाले समय में यह सेक्टर अच्छी उत्पादकता की ओर अग्रसर होता नजर आ रहा है। इसी उत्पादकता को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार और कुछ राज्य सरकारें किसानों को सब्सिडी के रूप में कुछ सहायता प्रदान करती है

क्या है कृषि सब्सिडी (Agricultural Subsidy) ?

किसी भी निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार के द्वारा किसानों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता सब्सिडी के अंतर्गत आती है।यह वित्तीय सहायता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसानों तक पहुंचाई जाती है। वित्त आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के किसानों के द्वारा प्रति हेक्टेयर जमीन से प्राप्त होने वाली आय में 21 प्रतिशत योगदान सरकार के द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का होता है।

ये भी पढ़ें: भारत सरकार द्वारा लागू की गई किसानों के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं (Important Agricultural schemes for farmers implemented by Government of India in Hindi)

कौन देता है भारत में कृषि सब्सिडी ?

भारतीय किसानों को स्थानीय राज्य सरकारों के अलावा मुख्यतः भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के द्वारा सब्सिडी प्रदान की जाती है, लेकिन अप्रत्यक्ष सब्सिडी के तौर पर केमिकल और फर्टिलाइजर मंत्रालय तथा कॉमर्स मंत्रालय के द्वारा भी सहायता दी जाती है। भारत में दी जाने वाली सब्सिडी पूर्णतया सरकार के द्वारा ही तय होती है, यदि बात करें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दी जाने वाली सब्सिडी की तो इन्हें मुख्यतः विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation) के द्वारा नियंत्रित किया जाता है और अलग-अलग देशों को उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर सब्सिडी देने में छूट प्रदान की गई है। वर्तमान में भारत विश्व व्यापार संगठन में एक विकासशील देश की श्रेणी में सम्मिलित किया गया है, इसी वजह से भारत को विकसित देशों की तुलना में अधिक सब्सिडी देने के लिए छूट दी गई है।

भारत सरकार के द्वारा दी जाने वाली अलग-अलग प्रकार की सब्सिडी :

हरित क्रांति के समय से ही भारत सरकार के द्वारा किसानों को आर्थिक सहयोग के तौर पर सब्सिडी दी जा रही है और इस क्रांति के दौरान बुवाई किए गए उच्च उत्पादकता वाले बीजों के बेहतर उत्पादन के लिए पानी और उर्वरकों के रूप में भारतीय किसानों को सब्सिडी देने की शुरुआत की गई थी। वित्त आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को निम्न प्रकार से विभाजितकिया जा सकता है :-

  • उर्वरक पर दी जाने वाली सब्सिडी (Fertilizer Subsidy) :

भारतीय कृषि को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने लायक बनाने के लिए किसानों को सस्ती दर पर रासायनिक उर्वरकों को उपलब्ध करवाने के लिए सरकार के द्वारा फर्टिलाइजर सब्सिडी की शुरुआत की गई थी। यह सब्सिडी मुख्यत: उर्वरक उत्पादक कंपनियों को प्रदान की जाती है, जो कि किसानों को सस्ते दामों पर यूरिया और डीएपी उपलब्ध करवाती है। इस सब्सिडी की मदद से कृषि में कच्चे माल के रूप में होने वाले खर्चे कम हो जाते है और पूरे भारत में उर्वरकों की एक समान कीमत बनी रहती है।

ये भी पढ़ें: अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत
 

सरकार के द्वारा किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी में फर्टिलाइजर सब्सिडी का योगदान सर्वाधिक है। वर्तमान में भारत सरकार कुछ सूक्ष्म उर्वरक जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के अलावा जिंक तथा आयरन जैसे रासायनिक उर्वरकों पर भी फर्टिलाइजर सब्सिडी उपलब्ध करवा रही है।

  • सीधे हस्तांतरण के तहत दी जाने वाली सब्सिडी (Direct Benefit transfer subsidy) :

 2019 में शुरू की गई है प्रत्यक्ष स्थानांतरण सब्सिडी वर्तमान में भारत के सभी किसानों को सीधे नकद राशि उपलब्ध करवाकर प्रदान की जाती है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम (PM-KISAN) के तहत हर किसान भाई को 6000 रुपए सालाना उपलब्ध करवाए जाते है। केंद्र सरकार के द्वारा प्रायोजित इस स्कीम में शुरुआत में लघु और सीमांत किसानों को ही शामिल किया गया था। खेती की सामान्य जरूरतमंद आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए शुरू की गई यह स्कीम भारत की किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प के रूप में उपलब्ध हुई है।

ये भी पढ़ें: प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना के लाभ तथा इसमें आवेदन करने का तरीका

  • बिजली पर दी जाने वाली सब्सिडी ( Power Subsidy) :

आधुनिक कृषि के दौर में मशीनीकरण की वजह से इस्तेमाल होने वाले पावर पंप और दूसरी इलेक्ट्रिक मशीनों के लिए सरकार के द्वारा किसानों को सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध करवाई जाती है।

ये भी पढ़ें: हरियाणा में खेतो की बिजली के समय को बढ़ाकर 7 घंटे कर दिया गया है
 

 मुख्यतः बिजली का इस्तेमाल सिंचाई की प्रक्रिया के दौरान होता है। यह सब्सिडी बिजली उत्पादक डिस्कोम कंपनियों को दी जाती है, जोकि बिजली की सामान्य रेट की तुलना में किसानों को सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध करवाती है। स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और भारत की कई बड़ी सरकारी कंपनी के द्वारा किसानों को इस तरह की सब्सिडी उपलब्ध करवाई जा रही है।

ये भी पढ़ें: 
मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना में लाभांवित होंगे हजारों किसान

कृषि अनुसंधान कार्यों में तेजी लाने के लिए सरकार के द्वारा कृषि वैज्ञानिकों को प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करने के अलावा, किसान भाइयों के लिए उच्च उत्पादकता प्रदान करने वाले बीजों (High yielding seed) की व्यवस्था भी सरकार के द्वारा सीड सब्सिडी के तहत ही की जाती है। इन बीजों को बहुत ही कम दर पर उपलब्ध करवाने पर किसान भाई आसानी से अपने खेत में होने वाले लागत को कम कर पाते है। एक अप्रत्यक्ष सब्सिडी के तौर पर सरकार के द्वारा बीज उत्पादन करने वाली कंपनियों को प्रदान की जाने वाली यह सब्सिडी कम्पनियों  की बीज विनिर्माण लागत को कम करती है और स्वतः ही बाजार में सस्ते बीज उपलब्ध हो पाते हैं।

ये भी पढ़ें: राजस्थान सरकार देगी निशुल्क बीज : बारह लाख किसान होंगे लाभान्वित

  • निर्यात पर दी जाने वाली सब्सिडी (Export Subsidy) :

भारत शुरुआत से ही एक कृषि प्रधान देश रहा है और इसी वजह से भारत में तैयार कृषि को अंतरराष्ट्रीय मार्केट में शुरुआत से ही एक अलग पहचान मिली हुई है, परंतु पिछले कुछ समय से कई देशों में कृषि क्षेत्र में बढ़ते अनुसंधान कार्यों और नई खोजों के बाद भी भारतीय कृषि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए सरकार के द्वारा निर्यात पर सब्सिडी दी जाती है। यह सब्सिडी किसी किसान या फिर कृषि उत्पादों से जुड़ी निर्यात कंपनी को दी जाती है। इस सब्सिडी का फायदा यह होता है कि इससे भारत में विदेशी धन आने के अलावा स्थानीय स्तर पर किसानों के द्वारा मुनाफा कमाया जा सकता है, हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात में दी जाने वाली सब्सिडी को विश्व व्यापार संघ के द्वारा जारी की गई गाइडलाइन के तहत ही दिया जा सकता है।

  • लोन पर दी जाने वाली सब्सिडी (Credit Subsidy ) :

यह बात तो हम जानते ही है कि भारतीय कृषि क्षेत्र में लघु और सीमांत किसान बहुत ही अधिक संख्या में है। ऐसे किसानों के पास बुवाई और खेती की शुरुआत करने के लिए छोटे क्षेत्र की जमीन तो होती है, परंतु शुरुआत में आने वाली लागत के लिए आर्थिक व्यवस्था नहीं होती है, इसी समस्या को दूर करने के लिए सरकार के द्वारा किसान भाइयों को ऋण पर सब्सिडी प्रदान की जाती है, जिसे क्रेडिट सब्सिडी भी कहा जाता है।

ये भी पढ़ें: किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के फायदे

बैंक के द्वारा एक सामान्य ग्राहक के तौर पर लगायी जाने वाली ब्याज दर पर सरकार के द्वारा कुछ प्रतिशत ब्याज दर स्वयं के द्वारा जमा करवायी जाती है, इसे इंटरेस्ट सब्वेंशन (Interest subvention)  के नाम से भी जाना जाता है। हाल ही में आत्मनिर्भर भारत स्कीम के तहत किसान भाइयों को ब्याज ऋण अदायगी में सरकार के द्वारा अच्छी सब्सिडी उपलब्ध करवाई गई है। इस प्रकार की ऋण व्यवस्था में किसान भाइयों को किसी भी प्रकार की संपार्श्विक (collateral) जमा करवाने की आवश्यकता नहीं होती है और बड़ी ही आसानी से ग्रामीण क्षेत्रों के किसान भी कृषि कार्यों में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों तथा बीज और दूसरे कच्चे माल के लिए कम ब्याज दर पर ऋण प्राप्त कर सकते है।

  • कृषि उपकरणों पर दी जाने वाली सब्सिडी (Agriculture Equipment Subsidy) :

भारत सरकार के द्वारा अलग-अलग स्कीम के तहत किसान भाइयों को कृषि में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की खरीद के लिए सब्सिडी प्रदान की जाती है। यह सब्सिडी मुख्यतः उपकरण की खरीद के बाद किसान भाइयों को उनके बैंक खाते में सीधे हस्तांतरण के माध्यम से उपलब्ध करवाई जाती है।

ये भी पढ़ें:
अब होगी ड्रोन से राजस्थान में खेती, किसानों को सरकार की ओर से मिलेगी 4 लाख की सब्सिडी 

 अलग-अलग राज्य सरकारें अपना योगदान मिलाकर भारत सरकार के द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी में सहयोग प्रदान कर सकती है। इसके अलावा कृषि क्षेत्र में विनिर्माण (Infrastructure) से जुड़े कार्यों को पूर्ण करने के लिए भारत सरकार के द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर सब्सिडी भी उपलब्ध करवाई जाती है। इस तरह की सब्सिडी की मदद से किसान भाइयों को तैयार कृषि उत्पादों को एक जगह से दूसरी जगह पर स्थानांतरित करने के लिए इस्तेमाल में होने वाले वाहन तथा कोल्ड स्टोरेज हाउस बनाने के लिए राशि उपलब्ध करवाई जाती है। 

ये भी देखें: ट्रैक्टर Tractor खरीदने पर मिलेगी 50 फीसदी सब्सिडी(subsidy), ऐसे उठा सकते हैं इस योजना का लाभ

कैसे प्राप्त करें कृषि सब्सिडी और आवश्यक योग्यताएं ?

यदि किसी सब्सिडी के लिए लघु, सीमांत और बड़े किसानों के लिए आवश्यक योग्यताएं अलग-अलग है तो इसके लिए आपको अलग से कृषि मंत्रालय या फिर दूसरे मंत्रालय (जो कि सब्सिडी को उपलब्ध करवा रहा है) कि वेबसाइट पर जाकर अपना निशुल्क पंजीकरण करवाना होगा। यदि बात करें इन सब्सिडी में अलग-अलग योग्यताओं की तो कई प्रकार की सब्सिडी केवल लघु और सीमांत किसानों के लिए ही उपलब्ध है, ऐसी सब्सिडी प्राप्त के लिए स्थानीय प्रशासन के द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के साथ किसान सेवा केंद्र में जाकर पंजीकरण करवाना होगा।आय और दूसरे कई आधारों पर दी जाने वाली सब्सिडी के तहत भी अलग से रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होगी। मुख्यतः खाते में सीधे हस्तांतरण (Direct Benefit Transfer) के तहत मिलने वाली सब्सिडी के दौरान ही इस तरह के पंजीकरण की आवश्यकता होती है, अप्रत्यक्ष रूप से मिलने वाली सब्सिडी सभी किसान भाइयों के लिए उपलब्ध होती है।

ये भी पढ़ें: भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

कृषि सब्सिडी की मदद से किसान भाइयों को होने वाले फायदे :

वर्तमान समय की प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था में भारतीय कृषि को संपन्न बनाने के पीछे कृषि क्षेत्र में दी जाने वाली सब्सिडी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, इन्हीं सब्सिडी की मदद से भारतीय किसान स्वयं की जरूरतें तो पूरी करता ही है, साथ ही तैयार कृषि उत्पादों को आसानी से बेचकर मुनाफा भी कमा सकता है। इन कृषि सब्सिडी की मदद से खेती की शुरुआत में आने वाली प्रारंभिक लागत में काफी कमी हो जाती है। वित्त आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि भारतीय किसान को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सब्सिडी उपलब्ध ना करवाई जाए तो उनके खेत से प्राप्त होने वाला मुनाफा 50 प्रतिशत तक कम हो सकता है। किसान क्रेडिट कार्ड स्कीम की मदद से उपलब्ध करवाए जाने वाले सस्ते लोन किसानों की खेती में इस्तेमाल होने वाली आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा एक बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में भी सहायक साबित हुए है।

ये भी पढ़ें:
देश में खेती-किसानी और कृषि से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानिए
 

आशा करते है कि हमारे किसान भाइयों को Merikheti.com के माध्यम से भारत सरकार और राज्य सरकारों के द्वारा कृषि से जुड़ी हुई सब्सिडी के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी, साथ ही इन सब्सिडी के लिए योग्यता तथा इनके लिए पंजीकरण कराने की प्रक्रिया का भी पता चल गया होगा। यही उम्मीद है कि भविष्य में आप भी सरकार के द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही सब्सिडी का इस्तेमाल कर अपने खेत की उत्पादकता को बढ़ाने के साथ ही मुनाफे में भी बढ़ोतरी कर पाएंगे।

क्यों बढ़ रहा है सरकार का उर्वरक सब्सिडी का बिल?

क्यों बढ़ रहा है सरकार का उर्वरक सब्सिडी का बिल?

आए दिन हम खबरों में सुन रहे हैं कि सरकार द्वारा किसानों को दी जाने वाली उर्वरक सब्सिडी को बढ़ाया जा रहा है। किसानों को दी जाने वाली यह सब्सिडी एक राहत के तौर पर दी जाती है। बल्कि हर सब्सिडी सरकार द्वारा हमे कुछ ना कुछ राहत की सांस देने के लिए ही लाई जाती है। लेकिन अब देखा जा रहा है कि केंद्र सरकार के लिए फ़र्टिलाइज़र सब्सिडी एक चुनौती बन गई है। किसी भी वित्त वर्ष के अंत तक इस सब्सिडी को 3 गुना तक बढ़ाया जा सकता है, और यह सब्सिडी वर्ष 2019 में 74,000 करोड़ रुपये थी। ऐसे में सरकार कोई त्वरित समाधान उपलब्ध नहीं होने के चलते उस बोझ (सब्सिडी बिल) को कम करने के लिए अगले साल से कम उर्वरक और गैस की कीमतों पर दांव लगा रही है। आइए जानते हैं आखिर उर्वरक सब्सिडी का गणित क्या है?

उर्वरक सब्सिडी का अर्थ क्या है??

जानकारी के लिए बता दें कि किसान उर्वरकों यानि कि फ़र्टिलाइज़र को अपनी ज़रूरत के अनुसार, अधिकतम खुदरा मूल्य (MRPs) के आधार पर खरीदते हैं। इसकी तुलना अगर मांग और आपूर्ति के आधार पर मार्किट मूल्य और उत्पादन/आयात में आने वाले खर्च से की जाए तो ये बेहद कम रहती है। उदाहरण के लिये सरकार द्वारा अगर किसी उर्वरक का अधिकतम खुदरा मूल्य (MRPs) 5000.00 रुपए प्रति टन रखा गया है। घरेलू निर्माताओं और आयातकों को इसके लिये औसतन क्रमशः 15,000 रुपए और 20,000 रुपए प्रति टन के हिसाब से कीमत चुकानी पड़ती है। ऐसे में बीच का ये मूल्य कौन चुकता है ?? इन दोनों के बीच आने वाला मूल्यों का जो अंतर आता है, उसका भुगतान केंद्र सरकार द्वारा उर्वरक सब्सिडी के रूप में किया जाता है।

ये भी पढ़ें: किसानों को मिलेगा आसानी से खाद-बीज, रेट में भारी गिरावट

कौन है उर्वरक सब्सिडी लेने के लिए मान्य?

● केंद्र सरकार द्वारा उर्वरक सब्सिडी सीधा किसानों को नहीं दी जाती है बल्कि ये पहले फ़र्टिलाइज़र कंपनियों को मिलती हैं। लेकिन अंत में जाकर इसका लाभ किसानों को ही मिलता है, जो कि बाज़ार निर्धारित दर नहीं बल्कि अधिकतम खुदरा मूल्य (MRPs) का भुगतान करता है। ● आजकल की बात की जाए तो मार्किट में भारत में 2.3 लाख से अधिक खुदरा विक्रेता हैं, और अब नई व्यवस्था के तहत प्रत्येक खुदरा विक्रेता के पास ‘ई-उर्वरक डीबीटी पोर्टल(e-Urvarak DBT Portal) से जुड़ी एक पॉइंट ऑफ सेल (PoS) मशीन है। ये पोर्टल केंद्र सरकार के तहत बनाया गया है। ● सब्सिडी पर फ़र्टिलाइज़र लेने के लिए किसान के पास आधार कार्ड या फिर किसान क्रेडिट कार्ड नंबर होना ज़रूरी है। ● नई व्यवस्था के तहत ई-उर्वरक पोर्टल पर पंजीकृत बिक्री होने के बाद ही कोई कंपनी उर्वरक के लिये सब्सिडी का दावा कर सकती है। इसके तहत सब्सिडी का भुगतान कंपनियों के बैंक खाते में किया जाता है।

भारत में क्या है कुल उर्वरक की खपत:

आंकड़ों की बात करें तो भारत ने बीते 10 वर्षों में सालाना 500 एलएमटी उर्वरक की खपत की है और उर्वरक सब्सिडी बिल 2011 में निर्धारित की गई राशि के मुकाबले 62% बढ़कर 1.3 लाख करोड़ रुपए हो गया है। वर्ष 2018-19 और वर्ष 2020-21 के बीच भारत का उर्वरक आयात बढ़ा है। औसतन बात की जाए तो ये 18 मिलियन टन से लगभग 8% बढ़कर 20 मिलियन टन के आसपास हो गया। इसके अलावा वर्ष 2021 में यूरिया की भारी कमी का सामना करना पड़ा और इसकी आवश्यकता का एक-चौथाई से अधिक आयात किया गया था।

क्यों है भारत में अधिक मात्रा में उर्वरकों की आवश्यकता:

जैसा कि हम सब को पता है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। साथ ही जनसंख्या जैसे जैसे बढ़ रही है, वैसे ही भारत के कृषि उत्पादन में प्रतिवर्ष वृद्धि हुई है। खेती में उर्वरक की आवश्यकता को नाकारा नहीं जा सकता है। इसलिए ही जैसे ही देश में कृषि का उत्पादन बढ़ा है। इसके साथ ही देश में उर्वरकों की मांग भी बढ़ी है। यहां पर समस्या ये हैं कि उर्वरक का काफी हिस्सा हमें आयात करना पड़ रहा है और आयात के बावजूद हमारा खुद का उत्पादन लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है, जिसके कारण मांग और उपलब्धता के बीच अंतर बना हुआ है।

ये भी पढ़ें: कृषि सब्सिडी : किसानों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की वित्तीय सहायता के बारे में जानें

क्या हैं वर्तमान हालत

अगर वर्तमान हालात की बात की जाए तो बजट में निर्धारित लागत से ये सब्सिडी 166 प्रतिशत अधिक है। इसकी पुष्टि इस बात पर की जा सकती है, कि उर्वरक विभाग ने वित्त मंत्रालय से 1.48 लाख करोड़ रुपये ज्यादा मांगे हैं। जिसके मायने यह निकाले जा सकते हैं, कि निर्धारित किया गया बजट अपने मूल आकार से लगभग दोगुना हो जाता है। सीधे तौर पर बात की जाए तो इस बजट में से 1.4 लाख करोड़ रुपये सीधे सीधे तौर पर यूरिया के लिए रखे गए हैं, जो कि बजट में दिए गए आंकड़ों से 125 प्रतिशत अधिक है। इसके अलावा पिछले दो साल की बात की जाए तो उर्वरक सब्सिडी 75 से 80 हजार करोड़ तक हुआ करती थी। इंटरनेशनल बाज़ार में कच्चे माल के दाम बढ़ जाने के कारण उर्वरकों का दाम काफी बढ़ जाएगा। जिससे किसानों के लिए खेती करना काफी महंगा हो जाएगा और हर किसान के लिए इस दाम पर फ़र्टिलाइज़र खरीदना संभव नहीं है। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि भारत में खेती करना आज भी लोगों का प्राथमिक व्यवसाय है, तो सरकार को यहां मदद करना आवश्यक हो जाता है। इसलिए सरकार लगातार सब्सिडी बढ़ा रही है।

क्या है उर्वरक चुनौती का कारण

भारत को अपनी उर्वरक आपूर्ति की आवश्यकता को पूरा करने के लिये चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण कई महीनों से चल रहे इस युद्ध के बारे में कोई विरला ही होगा जो नहीं जानता होगा। साथ ही इसमें हो रही तबाही और अन्य देशों पर इसके पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव से भी हम वंचित नहीं हैं। यूक्रेन और रुस को तो नुकसान पहुंचाया ही है साथ ही उन सभी देशों को जो इससे जुड़े हुए हैं उन्हें वितीय तौर पर ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ा है, जिनका असर हमें अभी देखने को मिल रहा है। 

युद्ध में केवल दो देशों का ही नहीं बल्कि उनसे किसी भी तरह से जुड़े हर देश का किसी ना किसी तरह से नुकसान होता है और यही भारत के साथ भी हुआ है। इसके अलावा उर्वरक आपूर्ति पर महामारी का प्रभाव भी बेहद बुरा रहा है। जैसा कि हम जानते हैं कि कोविड-19 का प्रभाव हर एक क्षेत्र पर पड़ा है। इसी तरह से उर्वरक और उसके आयात पर भी इसका सीधे तौर पर प्रभाव पड़ा है। महामारी ने पिछले दो वर्षों के दौरान दुनिया भर में उर्वरक उत्पादन, आयात और परिवहन को प्रभावित किया है। चीन, जो कि प्रमुख उर्वरक निर्यातक है, ने उत्पादन में गिरावट को देखते हुए अपने निर्यात को धीरे-धीरे कम कर दिया है। इसका प्रभाव भारत जैसे देश पर देखा गया है, जो चीन से अपने फॉस्फेटिक उर्वरक आवश्यकता का 40-45% आयात करता है।

महामारी के चलते इस आयात में जो अड़चन है, इसका सीधा असर हमें भारत के ऊपर देखने को मिल रहा है। भारत के अलावा और भी बहुत से देश है जिनपर इसका असर पड़ा है, जैसे कि यूरोप, अमेरिका, ब्राज़ील और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में मांग में वृद्धि हुई है। यहां पर दिक्कत इस बात की है कि उर्वरक की मांग बढ़ी है, लेकिन उर्वरक आपूर्ति बाधित है.

आगे की राह

कई विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि किसानों को प्रति एकड़ सब्सिडी का भुगतान प्रत्यक्ष तौर पर उनके खाते में किया जा सकता है। जिसका उपयोग वे स्वयं उर्वरक की खरीद के लिये कर सकते हैं। उगाई गई फसलों की संख्या के आधार पर और भूमि सिंचित है या नहीं इस आधार पर भी सब्सिडी की राशि अलग-अलग हो सकती है। इस बारे में सरकार को विचार करना आवश्यक है, यह संभवतः गैर-कृषि कार्यों के लिये यूरिया की चोरी को रोकने का एकमात्र विकल्प हो सकता है।

ये भी पढ़ें: ‘एक देश में एक फर्टिलाइजर’ लागू करने जा रही केंद्र सरकार
 

समय के साथ अगर इस इस समस्या का समाधान नहीं निकाला गया तो यह भारतवर्ष के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आ सकती है। अभी सरकार द्वारा इसकी पूर्ति करने के लिए बजट और धनराशि अलग से निकाली जा रही है, पर अगर यही हालात रहे तो सरकार के पास इस में कटौती करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रहेगा। जैसा कि हम जानते हैं, देश में हर एक किसान के हालात ऐसे नहीं है कि वह बिना सब्सिडी या फिर बेहद कम दी गई सब्सिडी पर और वर्ग याने की फर्टिलाइजर खरीद सकें और अपनी खेती कर सकें। 

हालांकि बाहरी समस्याओं के कारण हो रहे प्रभाव को हम कम नहीं कर सकते हैं और उसको लेकर केवल कोई ना कोई विकल्प ही निकाला जा सकता है। लेकिन अपनी अपनी समस्याओं को लेकर हम विचार-विमर्श कर सकते हैं और अपनी खपत को कम करने के बारे में कोई ना कोई हल निकाल सकते हैं। साथ ही सरकार को भी इसको लेकर थोड़े कड़े नियम और कुछ ऐसे कानून बनाने की जरुरत है, जिन्हें लोग समझ सकें और अमल में ला सकें।